शौर्ट स्टोरी चैलेंज
प्रतियोगिता:"शोर्ट स्टोरी चैलेंज"
"बड़जू "
जोनर : प्रेरक
कभी बड़जू माता -पिता की संतान में बड़े रहे थे ..!
गांव -देहात में बचपन बीता ,पिता बेहद कंजूस थे ..! जबकि,घर की माली हालत काफी अच्छी रही थी ..! बड़े -बड़े खेतों के मालिक रहे पिता ने हमेशा पैसों के लिए उलाहना दी ..!
बचपन से जवानी तक,जीवन के कठिन वक्त को भी उन्होंने आसानी से झेल लिया..। पिता के कड़क रौब के बीच ही वे पले बड़े थे ..! वे इस तरह अभ्यस्त हो चुके थे कि , उनको चुपचाप आज्ञाकारी बने रहना ही उचित लगने लगा ..! इसे दबाव तो नहीं कह सकते एक हद तक पिता के लिए सम्मान ही था ..!
गोरा चिट्टा रंग ,एकहरा बदन ,घुंघराले बाल .. सुंदर आकर्षक चेहरा ..! उसमें सादगी तो बेमिसाल थी,बड़ी -बड़ी आखों में दया करुणा सभी कुछ तो थी उनमें ..।
बड़जू की पढ़ाई पर पिता का रवैया जस कातस ही रहा .. जबकि उनमें काफी लगन कर्मठता थी ।
बस अपनी जमीन को तलाश करता हुआ बड़जू किसी तरह से बी.ए. और एम.ए. किया ।
पढ़ाई पूरी करने के लिए आखरी दांव बी.एड.में भी लगा दिया , पिता से खर्चा मांगा तो वे साफ बोले, ," तुम अपना इंतजाम जल्द करना ..। मेरे पास फालतू पैसा नहीं है ..! समझे तुम ..!"
अपने पिता से आखिरी मोहलत भी मिल गई थी ..और नम्बर भी अच्छे लाने थे ..! कमर कस ली ,उसबार बी.एड.के छमाई इंतहान में टॉप भी किया, समाचार मालूम हुए तो पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो गया ..!
उस बार बहुत ठंड पड़ रही थी और पिता ने उधर शहर में बड़जू से मिलने की सोची ..पिता मिलने चल दिए , बड़जू को जब पता चला पिता आ रहे हैं तो आश्चर्य के साथ संदेह हुआ ,हो ना हो पढ़ाई लिखाई बंद करने के उद्देश्य से आ रहें हैं पिता यह सोचकर कमरे से बाहर ही नहीं निकल रहे थे ..!
किसी तरह मन को ढांढस बंधाकर बाहर आए ..!
वहां पिता के हाथ में एक पैकेट को देखकर चौंक पड़े और जब पिता ने उसकी ओर बढ़ाया तो उसके हालात और भी अजीबोगरीब हो रहे थे ..!
बढ़जू ने झट से पैकेट पकड़ लिया और बोले,"--इसमें क्या है बाबू ..?"
बाबू मूछे ताव देकर बोले,"-- बड़जू अंदर कमरे में जाकर खोलो ,और पहन कर दिखाओ कैसा है ?फिट है कि नहीं ? मैं तब तक बाहर खड़ा हूं ..!"
कमरे के अंदर जाकर उसे पिता के स्वाभाव में जो बदलाव दिखा ,उसको वह महसूस कर सकता था ..!
जैसे ही उसने पैकेट खोला ....
उसकी कल्पना से परे एक बेशकीमती कोट था ,वो भी पिता का लाया हुआ ..!
उसमें लगे बेशकीमती बटन से नजरें हटती नहीं थीं ..! उसने अपने को शीशे में निहारा और देखता ही रह गया वह गहरे हरे रंग का कोट उसपर बहुत फब रहा रहा था ..!
उसने धीरे से दरवाजा खोला ,पिता को वहीं खड़ा पाया !
पिता ने हल्के से हाथ पकड़ा और पीठ सहलाई ..." इस बार ठंड बहुत थी और मैं ने सोचा तुम्हें खुद जाकर दे दूं..! क्या तुम्हें मेरी पसंद अच्छी लगी ?"
उसने धीरे से कहा ,"--जी बाबू जी ..!"
वह बड़जू के जीवन का पहला कोट था ,जिसको भेंट स्वरूप पिता ने दिया था ..!
पिता ने गले तो नहीं लगाया और ना ही पीठ थपथपाई बस इतना ही सुना जो उन्होंने कहा ,"-- शाबाश बेटा ..!"
पहले कोट ने उस वर्ष सर्दी बचा ली थी ..पिता ने अभी तक यह प्रेम कहां छिपा कर रखा था ,आज उसे उस बात का अहसास हुआ जब समय बीत रहा था,आज जब वह खुद दो बच्चों का पिता है , उनकी शादी जैसी जिम्मेदारियों से भी मुक्त हो गया है ..!
उसने आज बहुत दिनों बाद कोट को बक्से से निकाला ,एक पिता की अनमोल धरोहर ,जिसे मरते दम तक कभी नहीं भूल सकेगा वह ..!
उसके अश्रूधार बहकर बटन पर गिरने से बटन सितारों से जगमगा रहे थे ,पिता के प्यार की तरह ..!
#लेखनी
#लेखनी कहानी
#लेखनी कहानी का सफर
सुनंदा ☺️
Gunjan Kamal
31-May-2022 01:34 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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Reyaan
22-Apr-2022 10:14 AM
Very nice 👍🏼
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Diwa Shanker Saraswat
22-Apr-2022 09:33 AM
बहुत सुंदर कहानी
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